Economics (NTSE/Olympiad)
4. वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व व्यापार संगठन
परिचय :
GATT (शुल्क तथा व्यापार पर सामान्य अनुबंध) यह एक बहुपक्षीय संधी-पत्रा या व्यवस्था है जो 102 देशों द्वारा 1948 में स्थापित की गर्इ इसका उद्देश्य शुल्क तथा निशुल्क अवरोधों की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से कम सदस्य देशों के सम्बंधों के बीच सिद्धान्तों तथा नियमों के बहुपक्षीय ढांचे को अपनाकर शासन करना है। भारत GATT का एक असली सदस्य था। 1994 तक GATT की मुख्य ंिचंता घटिया तथा बेकार व्यापार कार्यो का नियमन करना तथा सुनिश्चित करना की सदस्य देश सुरक्षात्मक मापदण्डों को अधिकतर से कम करेंगें। इसके अलावा यह केवल अब है कि गैर सदस्यों ने प्रतिबद्धता स्वीकार कर ली है कि एक अन्र्तराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की जाए ताकि गेैर के उद्देश्यों और प्रावधानों को लागू कर सकें। मूल GATT समझौतों को 1960 में कनाडा दौर व 1970 में टोकियो दौर के माध्यम से कर्इ बार संशोधित किया गया। विस्तृत श्रंृखला के संशोधन के लिए वार्ता का नवीनतम दौर उरूग्वे ने 1986 में शुरू हुआ। इस दौर से गैर में व्यापक बदलाव आऐ हैं। इसका मसौदा GATT के पूर्व अध्यक्ष अरधल डंकल द्वारा तैयार किया गया था। इसे डंकल ड्राफ्ट के रूप में जाना जाता है। उरूग्वे दौर समझौतों में परिकल्पना की गर्इ और एक संस्था की स्थापना की जिसे विश्व व्यापार संगठन (WTO) कहा जाता है। यह संस्था संस्थागत रूपरेखा प्रदान कर इन समझौतों के प्रावधानों के अनुसार सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधों का आचरण करती है।
(a) अपने सदस्य देशों से WTO की अपेक्षा :
द्विमुखी दस्तावेज व्यापार के फैलाव के लिए दो देशों के मध्य रखा गया है।
आयात कोटा : सरकार इनके स्थार्इ उत्पादों की सुरक्षा के लिए आयात पर प्रतिबंध लगाती है।
निर्यात कोटा : सरकार इनके स्थार्इ उपभोक्ता की सुरक्षा के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाती है।
WTO आयात तथा निर्यात कोटा को समाप्त करना चाहता है तथा द्विमुखी दस्तावेज के स्थान पर बहुमुखी दस्तावेज रखता है।
(b) भारतीय अर्थव्यवस्था पर WTO का प्रभाव :
सकारात्मक प्रभाव :
(i) दूसरे देशों से व्यापार रखने के लिए सुअवसरों में वृद्धि हुर्इ।
(ii) कम दरों पर आधुनिक तकनीकी की उपलब्धता।
नकारात्मक प्रभाव :
(i) विकासशील देशों के लिए लाभ बहुत सीमित है।
(ii) विकासशील देशों में कम्पनियाँ अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों से पूर्ण रूप से दक्ष नही होती समापन का सामना कर सकती है ,रोजगार सुअवसर कम करती है।
(iii) विकसित देश विकासशील देशों की अन्तर्देशीय अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप करेंगें।
(iv) अधिकांश पर्याप्त तथा जीवन बचाने की औषधि का मूल्य बढ़ा है।
GATT (शुल्क तथा व्यापार पर सामान्य अनुबंध) यह एक बहुपक्षीय संधी-पत्रा या व्यवस्था है जो 102 देशों द्वारा 1948 में स्थापित की गर्इ इसका उद्देश्य शुल्क तथा निशुल्क अवरोधों की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से कम सदस्य देशों के सम्बंधों के बीच सिद्धान्तों तथा नियमों के बहुपक्षीय ढांचे को अपनाकर शासन करना है। भारत GATT का एक असली सदस्य था। 1994 तक GATT की मुख्य ंिचंता घटिया तथा बेकार व्यापार कार्यो का नियमन करना तथा सुनिश्चित करना की सदस्य देश सुरक्षात्मक मापदण्डों को अधिकतर से कम करेंगें। इसके अलावा यह केवल अब है कि गैर सदस्यों ने प्रतिबद्धता स्वीकार कर ली है कि एक अन्र्तराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की जाए ताकि गेैर के उद्देश्यों और प्रावधानों को लागू कर सकें। मूल GATT समझौतों को 1960 में कनाडा दौर व 1970 में टोकियो दौर के माध्यम से कर्इ बार संशोधित किया गया। विस्तृत श्रंृखला के संशोधन के लिए वार्ता का नवीनतम दौर उरूग्वे ने 1986 में शुरू हुआ। इस दौर से गैर में व्यापक बदलाव आऐ हैं। इसका मसौदा GATT के पूर्व अध्यक्ष अरधल डंकल द्वारा तैयार किया गया था। इसे डंकल ड्राफ्ट के रूप में जाना जाता है। उरूग्वे दौर समझौतों में परिकल्पना की गर्इ और एक संस्था की स्थापना की जिसे विश्व व्यापार संगठन (WTO) कहा जाता है। यह संस्था संस्थागत रूपरेखा प्रदान कर इन समझौतों के प्रावधानों के अनुसार सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधों का आचरण करती है।
(a) अपने सदस्य देशों से WTO की अपेक्षा :
द्विमुखी दस्तावेज व्यापार के फैलाव के लिए दो देशों के मध्य रखा गया है।
आयात कोटा : सरकार इनके स्थार्इ उत्पादों की सुरक्षा के लिए आयात पर प्रतिबंध लगाती है।
निर्यात कोटा : सरकार इनके स्थार्इ उपभोक्ता की सुरक्षा के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाती है।
WTO आयात तथा निर्यात कोटा को समाप्त करना चाहता है तथा द्विमुखी दस्तावेज के स्थान पर बहुमुखी दस्तावेज रखता है।
(b) भारतीय अर्थव्यवस्था पर WTO का प्रभाव :
सकारात्मक प्रभाव :
(i) दूसरे देशों से व्यापार रखने के लिए सुअवसरों में वृद्धि हुर्इ।
(ii) कम दरों पर आधुनिक तकनीकी की उपलब्धता।
नकारात्मक प्रभाव :
(i) विकासशील देशों के लिए लाभ बहुत सीमित है।
(ii) विकासशील देशों में कम्पनियाँ अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों से पूर्ण रूप से दक्ष नही होती समापन का सामना कर सकती है ,रोजगार सुअवसर कम करती है।
(iii) विकसित देश विकासशील देशों की अन्तर्देशीय अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप करेंगें।
(iv) अधिकांश पर्याप्त तथा जीवन बचाने की औषधि का मूल्य बढ़ा है।
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